
खबर सागर
अगलाड नदी में धूमधाम से मनाया गया मौण मेला
मोहन थपलियाल –
जौनपुर की लोक संस्कृति पर आघारित पौराणीक व राजशाही मौण मेला की परंपरा आज अगलाड नदी में हर्ष उल्लास के साथ नदी में मच्छी पकडने का सिलसिला धूमधाम से मनाया गया । बारिश के चलते नदी में मात्रा से अधिक पानी होने से लोगों के हाथ मच्छीयां कम लगी ।
शनिवार को अगलाड नदी में भीडे के नामें तोक पर विभिन्न क्षेत्र से 11 बजे मौणार्थी एकत्रित होने का सिलसिला शुरू हुआ । नदी में मौण डालने से पहले ग्राम सैजी में सामुहिक
सिलगांव द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर मौण टिमरू पाण्डर को एकत्रित कर ढोल नागडे साथ अगलाड़ नदी के भीडें नामें तोक पर पंहुचें ।
जहां दोपहर बाद समय 1.45 मिनट पर पत्तीदार सिल गांव के ग्रामीणों द्वारा मौण का तिलक लगाकर हर्ष उल्लास के साथ नदी में मौण डाला गया ।
नदी में मौण की प्रतिक्षा कर रहे हजारो की संख्या में कर रहे लोग मच्छी पकड़ने कि खेल लगभग 4 किमी लम्बी नदी में शुरु हुआ ।
लेकिन बारिश के चलते नदी में पानी अधिक होने पर लोगों के हाथ मच्छी कम हाथ लगी ।
इस बार मौण लाने की बारी ग्राम बग्लो की कांण्डी, सैजी, भटोली, काण्डी खाल,चम्या, बनोगी , गांवखेत, भेडियाना, काण्डा गाव,घंडियाला, सरतली, कसोन आदि द्वार नदी में लगभग 28 कटे प्राकृतिक औषोघि टिमरु का पाऊण्डर मौण को नदी में
उडेला गया ।

टिमरू का पाउडर नदी में डालने पर मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश होने पर आसानी से लोग पकड लेते है। तथा स्वय के संसाधनों से बनाये गए उपकरणों कुंडियाला ,जाल, फटियाडा आदि में मुख्य तौर पर मच्छी पकड में आ जाती है।
मौण मेले परंपरा18 वीं सदी मे टिहरी रियासत के राजा नरेन्द्र शाह ने शुरू कर आज तक पूरे सबाब व उल्लास के साथ त्यौहार के रूप में मनाते हैं ।
इस मेले में पट्टी सिलवाड़ ,पट्टी लालूर , पटटी दशजूला , पट्टी अठाजूला पट्टी,इडवालस्यूं सहित जौनसार व गोडर आदि के 114 गांव के लोग प्रतिभा कर इस मौण मेला का लुप्त उठाने के साथ क्षेत्र वासी रात्री को हर गांव में जमकर मच्छी व कच्ची त्यौहार के रूप में जश्न मनाते है ।
मौण मेला समिती के अध्यक्ष महिपाल सिंह सजवाण ने बताया कि यह मौण मेला टिहरी के राजशाही नरेंद्र शाह के समय से चली मेला जो कि जौनपुरी की लोक संस्कृति के संगम व आपसी भाई चारे का प्रतिक है। जिस पर सरकार से पर्यटन मेला घोषित करने की मांग की है।

मेले में 65 रामपाल पंवार का कहना कि 56 साल से
मौण मेले में मच्छी पकड़ने का आन्दन व अदाज अलग के चलते आगे भी प्रतिभा करता रहूगा ।
विरेन्द्र सिंह तोमर व जबर बर्मा का कहना है कि मेला उत्साह व उमंग का प्रतिक इसमे आने गर्व के साथ अपनी पौराणिक संस्कृति झलकती है। इस बार नदी में बारिश अधिक होने से मौणा तेजी बाह में बह जाने से लोगों के हाथ मच्छी पकड़ में कम आई ।