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धान की रोपाई पर गूंजे हुड़किया बौल, विरासत संजोए रखने की कवायद

खबर सागर

 

 

धान की रोपाई पर गूंजे हुड़किया बौल, विरासत संजोए रखने की कवायद

खेतों में हुड़किया बौल के गूंजते स्वर आज भी पहाड़ की उस संस्कृति को जिंदा कर देती है।
जिसे युवा पीढ़ी धीरे-धीरे दूर होती जा रही है।
जिसमें हुड़कियां बौल पर रामनगर में हुई धान की रोपाई,लोकसंस्कृति को जिंदा रखने का पिछले कई वर्ष से किया जा रहा है ।

उत्तराखंड की लोक संस्कृति की झलक यहां के तीज त्योहारों पर अक्सर देखने को मिल जाती है। यहां की संस्कृति जनमानस में रची बसी है। ये लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखती है। उत्तराखंड में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा रही है। हुड़किया बौल इसमें प्रमुख है।

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में धान की रोपाई व मडुवे की गोड़ाई के समय हुड़किया बौल गाए जाते हैं, हालांकि धीरे-धीरे युवा इन रीती रिवाजों से दूर होते जा रहे है। बावजूद उसके कुछ जंगहों पर आज भी उन परमपराओं को निभाया जा रहा है. जिसमें से एक है ‘हुड़किया बौल’।
पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है।
फिर हास्य व वीर रस आधारित राजुला मालूशाही, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं। रामनगर में महिलाएं हुड़के की थाप में भूमि का भूमि आला देवा हो देवा सफल है जाया मंगल गीत के साथ खेतों में रोपाई लगा रही हैं।
खेती और सामूहिक श्रम से जुड़ी यह परंपरा सिमटती जा रही है। लेकिन रामनगर के ग्रामीण इलाकों में बसे लोग आज भी संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं।
ऐसा माना जाता है कि हुड़किया बौल के चलते दिन-भर रोपाई के बावजूद थकान महसूस नहीं होती।
हुड़के की थाप पर लोकगीतों में ध्यान लगाकर महिलाएं तेजी से रोपाई के कार्य को निपटाती हैं। समूह में कार्य कर रही महिलाओं को हुड़का वादक अपने गीतों से जोश भरने का काम करता है।

यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कुमाऊं के कई हिस्सों में जीवंत है। और कई हिस्सों में बदलते कक्रीट के जंगलों व पहाड़ों से पलायन ने इस परंपरा को खत्म कर दिया है, जो बेहद ही आने वाले समय के लिए पर्यावरण के लिए दुष्परिणाम देगा।
पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है।
फिर हास्य व वीर रस आधारित राजुला मालूशाही, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं। हुड़के को थाम देता कलाकार गीत गाता है।
जबकि रोपाई लगाती महिलाएं उसे दोहराती हैं। हुड़के की गमक और अपने बोलों से कलाकार काम में फुर्ती लाने का प्रयास करता है।
वही इस कार्यक्रम में शामिल हुई ।
दसवीं की छात्रा भक्ति उप्रेती कहती है कि उन्होंने पहली बार इस तरीके से हुड़का बौल में धान की रोपाई करते देखा,व धान रोपाई की,वे कहती है पहाड़ों पर लोगो ने अपनी खेती छोड़ दी है और पलायन कर लिया है ।

आज किसानों को प्रोत्साहित करते हुए सरकारों को पहाड़ों के किसानों के लिये ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
,ताकि वह एक बार फिर अपनी जमीनों को कर सकें और उन्हें सरकारों की तरफ से अच्छा लाभ मिले।

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