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अदभुत, आलौकिक दिव्य ब्रहकमल पुष्क आस्था की महक

खबर सागर

अदभुत, आलौकिक दिव्य ब्रहकमल पुष्क आस्था की महक

उच्च हिमालय में हैं एक ऐसे अदभुत, आलौकिक, भव्य और दिव्य पुष्प से जिसे स्वयं देवों के देव ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था।इसीलिए इसका नाम ब्रह्मकमल पड़ा है।
इस फूल को ब्रह्मा जी ने इसलिए उत्पन्न किया क्यों कि जब भगवान शिव ने भूलवश गणेश जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया था। तब पुनः भगवान शिव जी को गणेश जी के धड़ पर हाथी का मुख लगाना था इसके लिए अमृत की आवश्यकता थी।
इसी समय ब्रह्मा जी ने ब्रह्मकमल की उत्पन्न किया और इस ब्रह्मकमल फूल से उत्पन्न हुआ था अमृत। और इसी अमृत से श्री गणेश को पुनः जीवित किया गया था, इसी कारण इसे ब्रह्मकमल भी कहा जाता है ।
मान्यता है कि इस ब्रह्मकमल के दर्शन मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।।
ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में और
उत्तराखंड में यह गंगोत्री घाटी के उच्च हिमालय क्षेत्र खासकर बुग्यालों में,पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि दुर्गम स्थानों पर बहुतायत में मिलता है।
ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम सौसुरिया ओबवल्लाटा है। यह सूरजमुखी परिवार (एस्टेरेसी) की एक प्रजाति है,और इसे आमतौर पर हिमालय का विशालकाय या हिमालय का राजा कहा जाता है।
ब्रह्म कमल का पौधा आमतौर पर मानसून के मौसम में खिलता है, जो कि जुलाई और सितंबर के बीच होता है। फूल के खिलने का समय स्थान और ऊंचाई पर निर्भर करता है।
और एक मान्यता ये भी है कि हिमालय की वादियों में एक ऐसा फूल भी है जो 14 साल में एक बार खिलता है।
इसका नाम है ब्रह्मकमल।
यह फूल तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर सिर्फ रात में खिलता है। सुबह होते ही इसका फूल बंद हो जाता है।
इस ब्रह्मकमल को जो जब चाहे तोड़ कर ले आए ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है।
यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितंबर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।

हिमालय की गोद में और हिमालय की वादियों में ये फूल
3 हजार से लेकर 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर उगने और पाया जाने वाला फूल ब्रह्मकमल सिर्फ रात में खिलता है और सुबह होते ही इसका फूल बंद हो जाता है।

हिमालय में इस दुर्लभ फूल के दीदार करने के लिए दुनियाभर से लोग हिमालय के इन उच्च क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं।
आपको बताते चलें कि
ब्रह्मकमल” का फूल उत्तराखंड का “राज्य पुष्पभी हैं।
ब्रह्मकमल को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस।

हिमालय के गंगोत्री घाटी में स्थित बहुतायत बुग्याल क्षेत्रों में बदरीनाथ, केदारनाथ के साथ ही फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, रूप कुंड, तुंगनाथ में ये फूल मिलता है।

ब्रह्मकमल अति सुंदर, सुगंधित और दिव्य फूल कहा जाता है। वनस्पति शास्त्र में ब्रह्म कमल की 31 प्रजातियां बताई गई हैं।

इसकी दिव्यता और सुंदरता और औषधीय गुणों के कारण ही इसे संरक्षित प्रजाति में रखा गया है।

कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में ब्रह्मकमल को काफी मुफीद माना जाता है।
कहा जाता है घर में भी ब्रह्मकमल रखने से कई दोष दूर होते हैं।

आपको बताते चलें कि अगस्त के महीने में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के उच्च हिमालय क्षेत्रों में स्थित गांवों में बड़े स्तर पर धार्मिक मेलों का आयोजन होता है।
इन्ही धार्मिक मेलों में स्थानीय ग्रामीण युवा लोग उच्च हिमालय में स्थित बुग्यालों में जाकर इन ब्रह्मकमल को बड़ी मात्राए एकत्रित कर लाते हैं और अपने अपने आराध्य देवों को अर्पित करते हैं। धार्मिक मेलों में शामिल होने वाले लोगों को भगवान के प्रसाद के रूप में इस ब्रह्मकमल को वितरित किया जाता है।

आपको जानकारी दें दें कि केवल और केवल ब्रह्मकमल को अपने अपने आराध्य भगवान को ही अर्पित करने के लिए इस ब्रह्मकमल पुष्प को लाया जाता है।
और अपने अपने घरों में इसे पूजा वाले स्थान पर बड़े संजों कर रखा जाता है। इसकी पवित्रता का भी खास ख्याल रखा जाता है।

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