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कॉर्बेट टाइगर रिजर्व हाथी संरक्षण की मिसाल, 1260 अधिक हाथियों का कुनबा बढ़ा,

खबर सागर

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व हाथी संरक्षण की मिसाल, 1260 अधिक हाथियों का कुनबा बढ़ा,

 

विश्व हाथी दिवस मनाया जा रहा है, और इस मौके पर उत्तराखंड का जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क हाथियों के संरक्षण व संवर्धन का एक शानदार उदाहरण पेश कर रहा है।
जिस पर हाथियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, बल्कि पार्क प्रशासन स्कूली बच्चों व स्थानीय समुदाय को जागरूक करने के लिए हर साल विशेष कार्यक्रम भी आयोजित करता है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व जो अपनी बाघों की आबादी के लिए विश्व प्रसिद्ध है, हाथियों के संरक्षण में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है,राष्ट्रीय विरासत पशु (National Heritage Animal) हाथी का कुनबा यहां लगातार बढ़ रहा है, 2010 में कॉर्बेट पार्क में 979 हाथी थे, जो 2015 में बढ़कर 1035 हो गए, और 2020 की गणना में यह संख्या 1260 से अधिक पहुंच गई। वहीं पूरे उत्तराखंड में हाथियों की संख्या 2200 से ज्यादा है।

विश्व हाथी दिवस का महत्व:
विश्व हाथी दिवस की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी, जिसका उद्देश्य हाथियों के संरक्षण उनके वासस्थल की सुरक्षा और लोगों में जागरूकता बढ़ाना है, भारत में हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया है और हिंदू धर्म में हाथी को भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जिस घर में हाथी की मूर्ति होती है, वहां विघ्नहर्ता गणेश का वास होता है।

कॉर्बेट पार्क की भूमिका:
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पार्क वार्डन अमित ग्वासकोटी के अनुसार हाथी एक लॉन्ग-रेंज एनिमल है जिसे इंजीनियर ऑफ फॉरेस्ट भी कहा जाता है,इनके वासस्थल का संरक्षण और हैबिटेट डेवलपमेंट कॉर्बेट प्रशासन की प्राथमिकता है,पार्क में कई ग्रासलैंड क्षेत्र हैं जो हाथियों के निवास स्थल हैं।
हाथी गलियारे इनके संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं। कॉर्बेट से लैंसडाउन रवसान कॉरिडोर, राजा जी टाइगर रिजर्व से जुड़ता है, जबकि कोसी रिवर कॉरिडोर के जरिए हाथी नेपाल तक प्रवास करते हैं,इन कॉरिडोर्स की सुरक्षा हाथियों और मानव, दोनों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष की चुनौती:
वन्यजीव प्रेमी दीप रजवार का कहना है कि हाथी संरक्षण की सबसे बड़ी चुनौती मानव-वन्यजीव संघर्ष है,तेजी से जंगलों में होटलों और रिसॉर्ट्स का निर्माण, देर रात तक तेज संगीत, और नेशनल हाईवे-309 पर बढ़ता ट्रैफिक, हाथियों के व्यवहार को प्रभावित कर रहा है, हाथियों को कॉरिडोर्स पार करने में दिक्कत होती है, जिससे सड़क हादसे और जनहानि की घटनाएं भी बढ़ी हैं।
उन्होंने कहा कि कॉर्बेट पार्क में हाथियों की आबादी 1260 से अधिक होना एक अच्छा संकेत है, लेकिन अगर पर्यटन और बुनियादी ढांचे का दबाव इसी तरह बढ़ता रहा तो इनकी सुरक्षा कठिन हो जाएगी।

हाथियों के वैज्ञानिक व सांस्कृतिक पहलू:
हाथी धरती का सबसे बड़ा स्थलीय स्तनपायी है, जो एक दिन में करीब 300 किलोग्राम तक भोजन करता है, इन्हें जंगलों का डॉक्टर भी कहा जाता है क्योंकि वे वनस्पति का प्राकृतिक प्रबंधन करते हैं और अपने मल के जरिए बीजों का प्रसार कर पेड़-पौधों की नई कोंपलें उगाने में मदद करते हैं।
हिंदू धर्म में हाथी को विशेष सम्मान प्राप्त है,भगवान गणेश का सिर हाथी का है, जो बुद्धि और स्मरण शक्ति का प्रतीक है।

वन्यजीव विशेषज्ञों की राय:
वन्यजीव प्रेमी गणेश रावत का कहना है कि हाथी लंबी दूरी तक प्रवास करते हैं और इस दौरान जंगल में नए रास्ते और पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखते हैं,नर-मादा अनुपात बेहतर होने से प्रजनन क्षमता भी अच्छी रहती है,उनका मानना है कि जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ हाथी गलियारों का पुनर्निर्माण समय की मांग है, क्योंकि हाथी किसी छोटे क्षेत्र में सीमित नहीं रह सकते।
वन्यजीव प्रेमी संजय छिम्वाल ने कहा कि भारत में हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु का दर्जा प्राप्त है, इसलिए इसका संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, जंगलों का स्वास्थ्य और हाथियों की मौजूदगी एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। हाथी केवल पर्यावरण संतुलन ही नहीं, बल्कि पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

आंकड़े और रुझान:
2010 – कॉर्बेट पार्क में 979 हाथी
2015 – संख्या बढ़कर 1035
2020 – 1260 से अधिक हाथी

उत्तराखंड में कुल आबादी 2200 से ज्यादा
ये आंकड़े बताते हैं कि संरक्षण प्रयास सफल हो रहे हैं, लेकिन तेजी से बढ़ते मानव हस्तक्षेप और पर्यटन दबाव के कारण चुनौतियां भी बढ़ रही हैं।
संरक्षण के लिए आगे का रास्ता:

हाथी गलियारों की सुरक्षा और पुनर्निर्माण – ताकि हाथी स्वतंत्र रूप से प्रवास कर सकें,पर्यटन प्रबंधन – संवेदनशील क्षेत्रों में होटल-रिसॉर्ट निर्माण पर नियंत्रण और शोर प्रदूषण कम करना।
सड़क सुरक्षा उपाय – हाईवे पर स्पीड ब्रेकर, साइनबोर्ड और अंडरपास निर्माण।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी – स्कूली बच्चों और ग्रामीणों को जागरूक करना।
मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकथाम – फेंसिंग, प्रारंभिक चेतावनी सिस्टम और वनकर्मियों की तैनाती।
विश्व हाथी दिवस केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं, बल्कि हाथी जैसे संकटग्रस्त प्रजाति के अस्तित्व को बचाने की पुकार है,जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क ने संरक्षण का जो मॉडल पेश किया है ।
वह देश और दुनिया के लिए प्रेरणादायक है,लेकिन अगर मानव-वन्यजीव संघर्ष, वासस्थल क्षरण और पर्यटन का अनियंत्रित दबाव जारी रहा तो यह सफलता खतरे में पड़ सकती है।
हाथी हमारे पर्यावरण, संस्कृति और जैव विविधता के अभिन्न अंग हैं,इन्हें बचाना केवल वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हम सबकी साझी जिम्मेदारी है।

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