उत्तराखंडसामाजिकस्वास्थ्य

महिलाएं समूह द्वारा फूलों सब्जियों से हर्बल कलर्स,त्वचा को नहीं नुकशान

खबर सागर

 

होली में आप केमिकल से बने रंगों के प्रयोग के डर से होली खेलने से डरते हैं तो अब घबराइए नहीं,रामनगर से 5 किलोमीटर दूर स्थित कानियाँ ग्रामसभा में महिलाओं की ओर से हर्बल गुलाल बनाये जा रहे है।
खास बात है कि इनको सब्जियों और फलों से बनाया जाने पर त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता ।

अगले हफ्ते देश मे होली का पर्व है जिसको हर कोई अपने अपने तरीके से मनाता है,और आपसी भेद भाव भूलकर प्रेम पूर्वक रहने का भी ये पर्व है।
वहीं इस पर्व में रंगों से रंगाने के लिए रामनगर के कानियाँ गांव की women resources centre(wrc)समूह की महिलाएं हर्बल कलर्स से रंग बनाने का कार्य कर रही है,इन हर्बल कलर्स को फूलों एवम सब्जियों के प्रयोग से बनाया जा रहा है, जो त्वचा के लिए हानिकारक भी नही होता,
गुलाल बनाने के लिए अरारोट पाउडर के साथ प्राकृतिक रंगों के अर्क को मिलाया जा रहा है,जिसमे चुकंदर से गुलाबी रंग, पालक के रस से हरा रंग, हल्दी और गेंदा का रस निकालकर पीला रंग बनाया जा रहा है,इसी प्रकार से सारी हर्बल चीजों का स्तेमाल कर 2 दर्ज़न से ज्यादा महिलाएं रोजगार से जुड़ी है।
वहीं इस विषय मे समूह, वूमन रिसोर्सेज सेंटर की संयोजक अनिता आनंद ने हमें बताया कि
देहरादून से संचालित होने वाले पद्म श्री डॉ अनिल जोशी जी के संस्थान हेस्को के अंतर्गत हमारा वूमेन रिसोर्सेस सेंटर समूह कार्य कर रहा है,जिसमे लगभग 25 से ज्यादा आसपास की महिलाएं रोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर हुई है,अनिता आनंद बताती की वह सारी आर्गेनिक चीजों पर कार्य कर रहे है और यहां सारे रंग आदि ऑर्गैनिक चीजों का स्तेमाल कर बनाये जाते है,उन्होंने बताया कि चुकंदर से हम गुलाबी रंग बनाते है ।
हल्दी से पीला,गैंदे के फूल से नारंगी,
पालक और धनिये से हरा,उन्होंने बताया कि हमारे द्वारा अरारोट में फलों और सब्जियों पालक ,फूलों आदि का रस निकालकर अरारोट में मिलाया जाता है, फिर उसका रंग आने के बाद उसे सुखाया जाता है, और सूखने के बाद इसको बारीख करने के लिए मिक्सी में पीसा जाता है,और फिर इसको और बारीख करने के लिए छन्नी में छानकर रंग तैयार किया जाता है।

अनिता ने बताया कि इस बार उन्हें अच्छा रेस्पॉन्स मिल रहा है अभी तक उनके लास 150 किलो रंग का ऑर्डर अलग अलग क्षेत्रों स्थित रिसॉर्ट्स या दुकानदारों से आ चुका है,और 180 से 200किलो का उत्पादन अभी तक उनके समूह द्वारा किया जा चुका है, उन्हें उम्मीद है कि ये 200किलो पार करेगा। उन्होंने बताया कि 12 महिलाएं इससे डायरेक्ट जुड़ी है और ज्यादा डिमांड आने पर 25 से 30 महिलाओं को यहां से रोजगार मिलता है।

वहीं समूह में जुड़कर रोजगार पा रही स्थानीय महिला गंगा बिष्ट कहती है कि वे रोजगार से जुड़कर खुस है कि वे लोगो को हर्बल कलर्स का स्तेमाल करवाकर आमदनी से भी जुड़ी है।
वहीं रोजगार पा रही अन्य महिला दमयंती देवी कहती है कि समूह से जुड़कर हमे बहुत सारे फायदे मिल रहे है और हम आत्मनिर्भर बन गयी है,वे कहती है कि इस बार उन्हें उम्मीद है पिछले वर्ष से भी ज्यादा आर्डर हमारे पास आएंगे।

वहीं स्थानीय रिसॉर्ट्स से हर्बल कलर्स की खरीदारी करने आई आशा बिष्ट कहती है कि हम लोग यहां अपने रिसॉर्ट्स में आने वाले पर्यटकों के लिये आर्गेनिक हर्बल कलर्स खरिदने आये है ।
यह पर ये महिलाएं कई रंगों के कलर्स फलों और सब्जियों से बना रही है, जो हमारे साथ ही होली पर आने वाले हमारे पर्यटकों की त्वचा के लिए भी हानिकारक नही है।

वहीं रंग खरीदने आये समाजसेवी व खरीदार गणेश रावत कहते है कि मैंने पिछले वर्ष इन गांव की महिलाओं से हर्बल कलर्स खरीदे थे ।

जिन्हें सभी ने बहुत पसंद किया और इस बार में फिर इन हर्बल कलर्स को होली मिलन समारोह के साथ ही परिवार के लिए ले जा रहा हूँ,और जो हम आत्मनिर्भरता की बात करते है महिलाओं की ,वो आत्मनिर्भरता यहां पर दिखाई दे रही है ।

वे कहते है कि ये रंग इतने अच्छे है कि हम इनको खा भी ले तो शरीर के लिए कोई नुकसान नही है और त्वचा को भी इन हर्बल कलर्स से कोई नुकसान नही है।

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