पलायन से खाली होते गांवों में सांस्कृतिक विरासत को बचाना चुनौती

खबर सागर
पहाड के गांव से आधिकाश लोगा गांव छोडकर शहर का रुख बड़ी तेजी से हो रहा है। जिसका उदारण बागेश्वर में पलायन की मार से खाली होते गांवों में सांस्कृतिक विरासत को बचाना की एक चुनौती होने लगी है।
जिस तरह से पहाडो में रंग बिरोगी होली का शबाब के साथ भारी भीड व रस कश था । अब इसका असर रंगों के पर्व होली पर भी पड़ रहा है।
घरों में लटके ताले और खंडहर हुए घर होल्यारों को मायूस कर रहें हैं।
पहाड़ में होली के त्योहार का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व है।पुराने समय से ही पहाड़ में 6 दिन की होली मनाने का रिवाज है।
लेकिन अव गॉव से लोग पलायन होने के बाद होली में सिर्फ अबीर गुलाल का टीका ही समित रह गई ।
जब कि पहले बैठकी एवं खड़ी होली गायन के साथ ही लोकगीत गाने लोकगीत गाने की भी शास्त्रीय परंपरा रही है।
यदि होली की पिछली बातों को याद कर आज भी होल्यारों के चेहरे खिल जाते हैं।
लेकिन पलायन की मार झेल रही पहाड़ की होली अब धीरे धीरे अपनी पहचान खो रही है।