
खबर सागर
नवरात्रि में गर्जिया देवी मंदिर में माता के दर्शन को उमड़े श्रद्धालुओं
कुमाऊ ओर गढ़वाल के प्रवेश द्वार रामनगर से 14 किलोमीटर दूर स्तिथ गर्जिया देवी मंदिर का परिसर नवरात्रि के मौके पर हजारों किलोमीटर दूर से माता के दर्शन के श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। मन्दिर परिसर में सुबह 4 बजे से लंबी लंबी श्रद्धालुओं की कतारे लग रही हैं। बता दें की गिरिजा देवी मंदिर में उत्तराखंड के नैनीताल जिले में रामनगर के पास कोसी नदी के बीच में एक टीले पर मौजूद है ।
गर्जिया देवी का मंदिर, जिन्हें देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि यहां पर जो भी मनोकामना सच्चे दिल से मांगी जाती है, वह पूरी हो जाती है. वैसे तो यहां हर समय भक्तों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन नवरात्र के दौरान यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।
वही मंदिर में पहुच रहे श्रद्धालुओं ने बताया मन्दिर की काफी मान्यता है जो यहां सच्चे मन से अपनी मन्नत मांगी जाती है उसे माता पूरी करती है।
वही स्थानीय कारोबारी ने बताया उनकी दूसरी पीढ़ी उनके साथ कारोबार में जुड़ गई है और माता की कृपा से मन्दिर परिसर में स्तिथ दुकानदार का कहना है माता की कृपा से कारोबार बरकत होती है जिससे सभी कारोबारी दुकानदार का जीवन यापन चलता है। वही मन्दिर के मुख्य पुजारी ने मनोज पांडे ने कहा कि
कोसी नदी किनदो धाराओं के बीचों बीच एक टीले में स्थित गर्जिया देवी मंदिर में स्थित है ।
नवरात्र के दिनों यहां सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लग रहा है । उन्होंने कहाँ कि ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में राजा विराट ने यहां देवी की तपस्या की थी। तब से ही टीले में शक्तिपुंज की स्थापना हुई है ।
यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामना लेकर आता है उसकी मनोकामना पूरी करती है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले एक मिट्टी का बड़ा सा टीला कोसी नदी के साथ बहकर आया था ।
और बटुक भैरव देवता उस टीले में विराजमान गर्जिया माता को देखकर उन्हें रोककर कहते है ‘देवी ठहरो और यहां मेरे साथ निवास करो’ हजारों साल पहले बटुक भैरव द्वारा रोका हुआ यह टीला आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है।
जहां गिरिराज हिमालय की पुत्री गर्जिया देवी निवास करती हैं जिन्हें हम माता पार्वती का एक दूसरा रूप भी कहते हैं। उत्तराखंड में गिरिजा माता को गर्जिया देवी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया 19वीं सदी में गर्जिया माता का अस्तित्व आज के समय जैसा नहीं था।
बल्कि यहां पर विरान घना जंगल हुआ करता था। साल 1950 में श्री 108 महादेव गिरि बाबा यहां पहुंचे तो उनके शिष्य ने यहां एक झोपड़ी बनाई. जिसमें उनके शिष्य ने गर्जिया मां की उपासना की है।
महादेव गिरि एक नागा बाबा और तांत्रिक थे जिन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थी, यही नागा बाबा एक जमाने में जापान के फौज के सिपाही थे और उन्हीं नागा बाबा ने राजस्थान से भैरव, गणेश और तीन महादेवी की मूर्तियों को लाकर यहां पर स्थापित किया था। ज़ो कि मंदिर का बहुत पुराना इतिहास बताया जाता है ।